कुछ महीने पहले अडानी ग्रुप पर अमेरिका में रिश्वतखोरी के गंभीर आरोप लगे थे। इन आरोपों के चलते छोटे और बड़े निवेशक अडानी ग्रुप से दूरी बनाने लगे। बाजार में ऐसा माहौल बन गया था कि अडानी के शेयरों में भारी गिरावट की संभावना जताई जा रही थी। इस डर से अधिकांश निवेशक अडानी के शेयरों में निवेश करने से बच रहे थे।

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म्यूचुअल फंड का अडानी ग्रुप पर भरोसा
हालांकि, संकट के इस दौर में कुछ घरेलू म्यूचुअल फंड हाउसेस ने अडानी ग्रुप पर विश्वास बनाए रखा। उन्होंने न केवल अपनी हिस्सेदारी बरकरार रखी, बल्कि कुछ ने इसे बढ़ाने का भी साहसिक कदम उठाया। यही वजह है कि आज जब अडानी ग्रुप के शेयरों का प्रदर्शन बेहतर हो रहा है, तो इन म्यूचुअल फंड्स को इसका सीधा लाभ मिल रहा है।
जब अडानी ग्रुप रिश्वतखोरी के आरोपों का सामना कर रहा था, तब विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) और कुछ प्रमुख निवेशकों ने अपनी हिस्सेदारी कम कर दी। उदाहरण के लिए, GQG पार्टनर्स ने अडानी ग्रुप के तीन प्रमुख शेयरों में अपनी हिस्सेदारी घटाई थी। दूसरी ओर, म्यूचुअल फंड्स ने साहस दिखाते हुए अडानी के छह शेयरों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने का फैसला लिया।
म्यूचुअल फंड्स के निर्णय का असर
अडानी ग्रुप के शेयर होल्डिंग पैटर्न से पता चलता है कि दिसंबर तिमाही में म्यूचुअल फंड्स ने अडानी पोर्ट्स में अपनी हिस्सेदारी 1.04% से बढ़ाकर 5.06% कर दी। अंबुजा सीमेंट्स में हिस्सेदारी 1.36% से बढ़कर 7.71% हो गई। इसके अलावा, अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस, अडानी एंटरप्राइजेज, अडानी ग्रीन एनर्जी, और अडानी पावर जैसे अन्य शेयरों में भी म्यूचुअल फंड्स ने हिस्सेदारी बढ़ाई। हालांकि, एसीसी में हिस्सेदारी मामूली रूप से कम होकर 15.2% पर आ गई।
विदेशी निवेशकों का बदलता रुख
GQG पार्टनर्स जैसे विदेशी निवेशकों ने अडानी पोर्ट्स में अपनी हिस्सेदारी घटाकर 44% से 1% कर दी। इसी तरह, अंबुजा सीमेंट्स में भी हिस्सेदारी कम हुई। हालांकि, अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस और अडानी एंटरप्राइजेज में GQG पार्टनर्स ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई।
देश के सबसे बड़े घरेलू संस्थागत निवेशकों में से एक, एलआईसी (LIC) ने अडानी ग्रुप के शेयरों को लेकर संतुलित दृष्टिकोण अपनाया। एलआईसी ने एसीसी में थोड़ी हिस्सेदारी खरीदी, जबकि अडानी एंटरप्राइजेज में थोड़ी हिस्सेदारी बेच दी। बाकी शेयरों में यथास्थिति बनाए रखी गई।
अडानी पर लगे आरोप
अमेरिका में अडानी ग्रुप पर रिश्वत देने के आरोपों के कारण यह संकट पैदा हुआ। न्यूयॉर्क फेडरल कोर्ट में गौतम अडानी और उनकी कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड पर आरोप लगा कि उन्होंने सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट से जुड़ा एक कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए 265 मिलियन डॉलर की रिश्वत की पेशकश की थी। इसमें गौतम अडानी के भतीजे सागर अडानी और अन्य का नाम भी सामने आया।
म्यूचुअल फंड्स का लाभ
घरेलू म्यूचुअल फंड्स का अडानी ग्रुप पर भरोसा अब लाभ में बदल रहा है। जब अधिकांश निवेशक जोखिम से बच रहे थे, तब म्यूचुअल फंड्स ने दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाया और अडानी के शेयरों में निवेश जारी रखा।
अडानी ग्रुप पर संकट के बावजूद, घरेलू म्यूचुअल फंड्स ने अपनी रणनीति में बदलाव नहीं किया और आज उनके साहसिक फैसले का परिणाम सकारात्मक रूप में सामने आ रहा है। यह घटना निवेशकों को यह सिखाती है कि कभी-कभी जोखिम उठाना फायदेमंद साबित हो सकता है।
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