वैश्विक स्तर पर बढ़ते जियोपॉलिटिकल तनाव, अमेरिका के अंदरूनी राजनीतिक उलझाव और कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के बीच भारतीय शेयर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। निवेशक और ट्रेडर्स दोनों ही असमंजस में हैं कि आगे की दिशा क्या होगी। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अमेरिका-ईरान-इजराइल के बीच चल रही तनातनी वैश्विक बाजारों को और हिला कर रख देगी?
डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयानों ने अमेरिकी राजनीति में नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने पाकिस्तानी आर्मी चीफ असीम मुनीर से मुलाकात कर यह जता दिया कि आने वाले दिनों में अमेरिका की नीति में बड़े बदलाव संभव हैं। उन्होंने अपने ही फेड चेयरमैन को “मूर्ख” कहकर जो सियासी हलचल मचाई, उससे बाजार को एक और झटका लगा।

तेल की बढ़ती कीमतें और आरबीआई की दुविधा
ब्रेंट क्रूड की कीमत $79 प्रति बैरल के पार पहुंच गई है। यह वो स्तर है जिसकी आशंका भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) को भी नहीं थी। RBI ने हाल ही में 50 बेसिस पॉइंट्स की ब्याज दर कटौती कर बाजार को सहारा देने की कोशिश की थी, लेकिन कच्चे तेल की कीमतों ने सारा समीकरण बिगाड़ दिया है। अगर यह बढ़कर $85–90 तक पहुंचता है, तो भारत के लिए चालू खाता घाटा और महंगाई – दोनों पर सीधा असर पड़ेगा।
शेयर मार्केट का हाल – गिरावट और भय
Nifty और Sensex जैसे इंडेक्स में बीते कुछ दिनों में गिरावट दर्ज की गई है। ट्रेडर्स को चेतावनी दी जा रही है कि अगर Nifty 24,500 के नीचे फिसलता है तो और तेज बिकवाली आ सकती है। स्मॉल और मिड कैप स्टॉक्स में तो हालात और भी खराब रहे – NSE पर महज 516 स्टॉक्स हरे निशान में बंद हुए।
सबकी निगाहें इस वक्त पश्चिम एशिया पर टिकी हैं। इजराइल ने ईरान पर बड़ी सैन्य कार्रवाई की है और जवाब में ईरान ने भी परमाणु हथियार तक इस्तेमाल करने की चेतावनी दी है। ऐसे में अमेरिका की भूमिका बेहद निर्णायक होगी – क्या वह खुलकर किसी पक्ष का समर्थन करेगा? अगर ऐसा होता है, तो बाजारों में डर और गहराएगा।
निवेशकों के लिए अवसर या संकट?
शॉर्ट टर्म में बाजार में अस्थिरता और भय हावी रहेगा, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि लॉन्ग टर्म निवेशकों के लिए यह एक सुनहरा मौका हो सकता है। मानसून सामान्य रहने की उम्मीद है, GDP ग्रोथ के आंकड़े मजबूत हैं और प्राइवेट कैपेक्स में भी तेजी आ रही है।
इसके साथ ही भारत और अमेरिका के बीच संभावित ट्रेड डील की भी चर्चा है, जो फार्मा, ऑटो और आईटी सेक्टर्स के लिए राहत ला सकती है। हालांकि, यह तभी संभव होगा जब इजराइल-ईरान तनाव शांत हो।
ट्रेडर्स को सतर्क रहने की सलाह दी जा रही है, खासकर इंट्राडे या शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग करने वालों को। निवेशकों को सलाह है कि लंबी अवधि के नजरिए से अच्छी कंपनियों में निवेश के मौके तलाशें। होटल, हॉस्पिटैलिटी और ऑटो सेक्टर जैसे क्षेत्रों में ग्रोथ की संभावना अभी भी बनी हुई है।
निष्कर्ष:
इन सभी घटनाओं के बीच, सबसे बड़ा सवाल यही है – क्या अगले दो हफ्ते शांति लाएंगे या तनाव और बढ़ेगा? बाजार की चाल अब पूरी तरह जियोपॉलिटिकल घटनाओं पर निर्भर है। निवेशकों को धैर्य और दूरदृष्टि के साथ कदम उठाना होगा क्योंकि यही समय है जब बड़ा पैसा कमाया या गंवाया जा सकता है।
F.A.Q.
– क्या ईरान और इज़राइल के बीच युद्ध से भारतीय शेयर बाजार पर असर पड़ेगा?
हाँ, इस युद्ध से वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में उछाल आ सकता है, जिससे भारत की इकोनॉमी और शेयर बाजार पर सीधा असर पड़ेगा। निवेशकों को सतर्क रहने की सलाह दी जा रही है।
– क्या डोनाल्ड ट्रंप के बयानों से मार्केट में अनिश्चितता बढ़ी है?
बिलकुल, ट्रंप के बयान अक्सर विरोधाभासी होते हैं। हाल ही में फेड चेयरमैन को ‘मूर्ख’ कहने और पाक आर्मी चीफ की तारीफ से ग्लोबल पॉलिटिकल माहौल और अधिक अस्थिर हो गया है।
– क्या कच्चे तेल की कीमतें 90 डॉलर तक जा सकती हैं?
संभावना है, क्योंकि ब्रेंट क्रूड पहले ही $79 प्रति बैरल को छू चुका है। अगर युद्ध और गहराया तो कीमतें 85-90 डॉलर तक जा सकती हैं, जो भारत के लिए चिंता का विषय है।
– इस समय ट्रेडर्स को क्या रणनीति अपनानी चाहिए?
ट्रेडर्स को शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग से बचना चाहिए और 24,500 के स्तर को बारीकी से ट्रैक करना चाहिए। यह लेवल टूटने पर बड़ी बिकवाली आ सकती है।
– क्या लॉन्ग टर्म निवेशकों के लिए यह अच्छा समय है?
हाँ, अगर आप 12–18 महीने का नजरिया रखते हैं, तो यह एक मौका हो सकता है। बाजार में गिरावट के दौरान अच्छी कंपनियों के शेयर डिस्काउंट पर मिल सकते हैं।
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