अगर आप शेयर बाजार, म्यूचुअल फंड, स्टार्टअप्स या सरकारी कंपनियों में दिलचस्पी रखते हैं, तो भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की 18 जून को होने वाली बोर्ड मीटिंग आपके लिए बेहद अहम साबित हो सकती है। उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में नौ बड़े प्रस्तावों पर मुहर लग सकती है, जिनसे भारत के कैपिटल मार्केट में बड़ा बदलाव संभव है।
बैठक का मुख्य फोकस निवेश की प्रक्रियाओं को सरल और पारदर्शी बनाना, स्टार्टअप्स को अधिक लचीलापन देना और विदेशी निवेश को आकर्षित करना होगा। जानिए वो तीन बड़े क्षेत्रों के बारे में जहां इस बैठक के फैसलों से गहरा असर पड़ सकता है:

म्यूचुअल फंड और निवेशकों को मिल सकते हैं नए विकल्प
SEBI की बैठक में सबसे अहम प्रस्ताव REITs और InvITs को इक्विटी जैसा दर्जा देने से जुड़ा है। अगर यह पास होता है, तो म्यूचुअल फंड अब 10% की बजाय 20% तक निवेश कर सकेंगे। इससे इन सेक्टर्स को इंडेक्स में शामिल करने का रास्ता खुलेगा और निवेशकों को रियल एस्टेट व इंफ्रास्ट्रक्चर में इनडायरेक्ट तरीके से निवेश करने का बेहतर मौका मिलेगा।
साथ ही, Qualified Institutional Placement (QIP) नियमों को भी आसान बनाने पर विचार हो सकता है, जिससे कंपनियां बिना IPO लाए भी जल्दी और कम दस्तावेज़ों के साथ फंड जुटा सकेंगी। इससे खासतौर पर मिड-कैप कंपनियों और स्टार्टअप्स को फायदा मिलेगा।
सरकारी कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिए नई राहतें संभव
सरकारी कंपनियों की स्वैच्छिक डीलिस्टिंग को आसान बनाने पर भी बड़ा फैसला हो सकता है। खासतौर पर जिन कंपनियों में सरकार की 90% या उससे अधिक हिस्सेदारी है, उन्हें लंबी प्रक्रिया से बाहर निकालकर सीधे शेयर बाजार से हटाने की सुविधा दी जा सकती है। इससे सरकार को घाटे वाली या कम ट्रेड होने वाली कंपनियों के मामले में लचीलापन मिलेगा।
वहीं स्टार्टअप फाउंडर्स के लिए भी राहत भरी खबर है। मौजूदा नियमों के अनुसार, IPO से पहले प्रमोटर्स को ESOP (Employee Stock Option Plan) देने की इजाज़त नहीं होती, लेकिन अब IPO से एक साल पहले दिए गए ESOPs को प्रमोटर होल्ड कर सकेंगे। इससे स्टार्टअप्स को अधिक मोटिवेशन और IPO में लचीलापन मिलेगा।
विदेशी निवेश और रेगुलेटरी सुधारों पर बड़ा फोकस
बैठक में Foreign Portfolio Investors (FPIs) को राहत देने पर भी विचार होगा। खासतौर पर वो FPI जो केवल सरकारी बॉन्ड्स में निवेश करते हैं, उन्हें आसान रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया, कम कंप्लायंस और ज्यादा छूट मिल सकती है। इससे भारत में सरकारी बॉन्ड मार्केट को बढ़ावा मिलेगा और विदेशी निवेश आकर्षित होगा।
इसके अलावा, Alternative Investment Funds (AIF) के लिए भी CIV (Collective Investment Vehicle) के तहत नए निवेश विकल्प की मंजूरी संभव है। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और AIF मैनेजर निवेशकों को बेहतर सलाह दे सकेंगे – चाहे उस सिक्योरिटी में निवेश हो या नहीं।
SEBI इस बैठक में IT और लीगल विभाग के लिए दो नए Executive Directors की नियुक्ति पर भी विचार कर सकता है, ताकि बढ़ते डिजिटल और कानूनी दबाव को संभाला जा सके।
पुराने विवादों के निपटारे के लिए भी पहल संभव है। NSEL घोटाले में 300 से ज्यादा ब्रोकरों पर जारी नोटिस के चलते एक सेटलमेंट स्कीम लाने की योजना है, जिससे निवेशकों को फंसा हुआ पैसा वापस मिलने की उम्मीद बढ़ेगी। साथ ही पुराने वेंचर कैपिटल फंड्स मामलों में भी सेटलमेंट स्कीम से पारदर्शिता आएगी।
निष्कर्ष:
अगर ये प्रस्ताव पास होते हैं, तो इससे भारतीय शेयर बाजार में निवेश का माहौल ज्यादा आसान, पारदर्शी और निवेशकों के अनुकूल बन सकता है। अब देखना होगा कि SEBI की 18 जून की बैठक निवेश की दुनिया में कितना बड़ा बदलाव लाती है।
F.A.Q.
– SEBI की 18 जून 2025 की बैठक क्यों महत्वपूर्ण है?
इस बैठक में SEBI कुल 9 बड़े प्रस्तावों पर फैसला ले सकता है, जिनमें REITs/InvITs में निवेश, स्टार्टअप्स के ESOP नियमों में बदलाव, सरकारी कंपनियों की डीलिस्टिंग प्रक्रिया, और विदेशी निवेश से जुड़ी बड़ी घोषणाएं शामिल हैं। ये सभी फैसले भारतीय शेयर बाजार और निवेशकों के लिए बड़ा असर डाल सकते हैं।
– REITs और InvITs को लेकर क्या बदलाव हो सकता है?
बैठक में REITs और InvITs को इक्विटी जैसी मान्यता मिलने की संभावना है, जिससे म्यूचुअल फंड्स इन क्षेत्रों में 20% तक निवेश कर सकेंगे। इससे रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में निवेश के नए रास्ते खुलेंगे।
– स्टार्टअप फाउंडर्स को ESOP को लेकर क्या राहत मिल सकती है?
वर्तमान में IPO से पहले प्रमोटर्स को ESOP देने की अनुमति नहीं है, लेकिन नए प्रस्ताव के अनुसार IPO से 1 साल पहले दिए गए ESOPs को प्रमोटर्स होल्ड कर सकेंगे, जिससे स्टार्टअप्स को अधिक लचीलापन और मोटिवेशन मिलेगा।
– क्या सरकारी कंपनियों को डीलिस्ट करना आसान हो जाएगा?
हां, बैठक में ऐसे सरकारी उपक्रम जिनमें सरकार की 90% से अधिक हिस्सेदारी है, उनके लिए स्वैच्छिक डीलिस्टिंग की प्रक्रिया को आसान बनाने का प्रस्ताव रखा जा सकता है। इससे सरकार उन कंपनियों को तेजी से बाजार से बाहर निकाल सकेगी जिनका फ्री फ्लोट बहुत कम है।
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