भारत के म्यूचुअल फंड उद्योग ने हाल ही में एक नया रिकॉर्ड बनाया है। जून 2025 में जारी किए गए ताजा आंकड़ों के अनुसार, म्यूचुअल फंड्स में एसआईपी (सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) इनफ्लो 26,688 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जो अब तक का सबसे ऊंचा स्तर है। इसके साथ ही म्यूचुअल फंड्स का कुल एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) भी रिकॉर्ड 72.2 लाख करोड़ रुपये के पार निकल गया है।
इस उल्लेखनीय वृद्धि का प्रमुख कारण रिटेल निवेशकों की तेजी से बढ़ती भागीदारी है। जहां एक ओर विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) समय-समय पर बाजार से पैसे निकालते हैं, वहीं घरेलू निवेशक विशेष रूप से SIP के माध्यम से लंबी अवधि के निवेश को अपनाते हुए म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री में स्थिरता ला रहे हैं।

क्यों बढ़ रहा है SIP इन्वेस्टमेंट?
SIP निवेश की लोकप्रियता इसलिए बढ़ी है क्योंकि यह निवेशकों को अनुशासन और लंबी अवधि की दृष्टि से निवेश करने में मदद करता है। छोटे-छोटे मासिक निवेशों के माध्यम से निवेशक बाजार की उतार-चढ़ाव को बेहतर तरीके से झेल सकते हैं और कंपाउंडिंग का लाभ उठा सकते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों में फाइनेंशियल लिटरेसी में सुधार, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स की सुविधा और सोशल मीडिया के माध्यम से निवेश ज्ञान का प्रसार, SIP को आम निवेशकों के बीच आकर्षक विकल्प बना रहा है।
म्यूचुअल फंड्स और DII की भूमिका
म्यूचुअल फंड्स घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) का एक अहम हिस्सा हैं। इनके अलावा बीमा कंपनियां, पेंशन फंड्स और बैंक भी DII के अंतर्गत आते हैं। जब ये संस्थाएं शेयर बाजार में निवेश करती हैं, तो उसे DII बायिंग कहा जाता है। यह DII बायिंग बाजार में स्थिरता लाने में अहम भूमिका निभाती है, खासकर तब जब विदेशी निवेशक बिकवाली कर रहे हों।
DII के इन्वेस्टमेंट से मार्केट में सपोर्ट लेवल बनते हैं और अच्छे स्टॉक्स को फंडामेंटल सपोर्ट मिलता है। हालांकि, जरूरी नहीं है कि हर बार DII जिस स्टॉक में निवेश करें वह आम निवेशकों के लिए भी फायदेमंद हो। इसके पीछे कई बार इंडेक्स रीबैलेंसिंग जैसी मजबूरी भी होती है।
उदाहरण: ट्रेंट लिमिटेड में DII होल्डिंग
सितंबर 2024 में ट्रेंट लिमिटेड को Nifty 50 इंडेक्स में शामिल किया गया था। इसके चलते म्यूचुअल फंड्स और इंडेक्स-ट्रैकिंग स्कीम्स को मजबूरन उसमें निवेश करना पड़ा। उस समय कंपनी का प्राइस-टू-ईअर्निंग्स रेशियो 200 के ऊपर था, फिर भी DII की होल्डिंग 13.39% से बढ़कर 17.2% हो गई। वहीं, पब्लिक की होल्डिंग भी बढ़ी, जबकि FIIs ने अपने हिस्से बेच दिए।
इसका मतलब यह है कि सिर्फ इस आधार पर कि DII किसी स्टॉक में होल्डिंग बढ़ा रहे हैं, निवेश करना एक रिटेल निवेशक के लिए सही निर्णय नहीं हो सकता।
DII को फॉलो करना सही रणनीति?
DII को आंख बंद कर फॉलो करना रिटेल निवेशकों के लिए जोखिमभरा हो सकता है। DII का रिस्क एपेटाइट, इन्वेस्टमेंट होराइजन और इन्वेस्टमेंट का मकसद आम निवेशक से बिलकुल अलग होता है। उदाहरण के तौर पर, DII अगर किसी स्टॉक में 2% एलोकेशन करता है और उसमें नुकसान होता है, तो वह अन्य डाइवर्सिफाइड होल्डिंग्स से उसकी भरपाई कर सकता है। वहीं रिटेल निवेशक यदि 30% अलोकेशन करता है, तो नुकसान झेलना मुश्किल हो जाता है।
कौन बेच रहा है, यह जानना भी जरूरी
जब DII किसी स्टॉक में खरीदारी करते हैं, तो यह भी देखना जरूरी है कि उस समय कौन बेच रहा है — प्रमोटर, FIIs या पब्लिक। अगर बड़े निवेशक या प्रमोटर उस समय स्टॉक बेच रहे हैं, तो वहां सावधानी बरतना जरूरी हो जाता है। क्योंकि माना जाता है कि प्रमोटर और बड़े निवेशकों के पास आम रिटेल निवेशक की तुलना में बेहतर जानकारी होती है।
निष्कर्ष
SIP के जरिए म्यूचुअल फंड्स में रिकॉर्ड निवेश भारत की फाइनेंशियल ग्रोथ और निवेशकों की बढ़ती समझदारी का संकेत है। हालांकि, DII की चालों को समझदारी से देखना और अपनी रिस्क प्रोफाइल व गोल के अनुसार निवेश करना ही बेहतर रणनीति है। ब्लाइंड फॉलोअर्स नहीं, स्मार्ट इन्वेस्टर्स बनने की जरूरत है।
F.A.Q.
– SIP में इतना पैसा क्यों लग रहा है?
खुदरा निवेशक (retail investors) अब शेयर बाजार में लंबी अवधि के लिए निवेश करने लगे हैं। म्यूचुअल फंड्स की आसान पहुंच, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और जागरूकता के चलते SIP में रिकॉर्ड तोड़ निवेश हो रहा है।
– क्या SIP से वाकई में बड़ा रिटर्न मिल सकता है?
हां, अगर आप लंबी अवधि तक SIP जारी रखते हैं और सही फंड चुनते हैं, तो कंपाउंडिंग का असर शानदार हो सकता है। हालांकि, रिटर्न फंड के प्रदर्शन और बाजार की चाल पर निर्भर करता है।
– DII कौन होते हैं और ये बाजार में इतना पैसा क्यों लगा रहे हैं?
DII यानी Domestic Institutional Investors जैसे म्यूचुअल फंड हाउस, बीमा कंपनियाँ आदि। ये लंबी अवधि के नजरिए से निवेश करते हैं और जब विदेशी निवेशक (FII) बिकवाली करते हैं, तो DII बाजार को सपोर्ट करते हैं।
– क्या SIP अभी शुरू करना सही रहेगा या बाजार बहुत महंगा हो गया है?
SIP की खूबी ही यही है कि यह हर महीने एक निश्चित राशि निवेश करता है, जिससे मार्केट का औसत मूल्य (rupee cost averaging) मिलता है। इसलिए SIP कभी भी शुरू की जा सकती है — जल्दी शुरू करना फायदेमंद होता है।
– SIP और लम्पसम निवेश में क्या फर्क है?
SIP में हर महीने थोड़ी-थोड़ी राशि निवेश होती है, जबकि लम्पसम में एक साथ बड़ी रकम लगाई जाती है। SIP जोखिम को कम करता है और बाजार के उतार-चढ़ाव का औसत निकालता है, जबकि लम्पसम में टाइमिंग का ज्यादा असर होता है।
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