वॉरेन बफेट के गुरु बेंजमिन ग्राहम ने एक बार कहा था, “शॉर्ट रन में स्टॉक मार्केट एक वोटिंग मशीन है, लेकिन लॉन्ग रन में यह एक वेइंग मशीन बन जाती है।” यानी अल्पकाल में मार्केट इमोशंस और सेंटीमेंट्स पर चलता है, लेकिन दीर्घकाल में वही कंपनियां चमकती हैं जिनकी बेसिक्स मजबूत होती हैं।
आज हम ऐसे ही दो स्टॉक्स की बात कर रहे हैं जिनकी फंडामेंटल्स बेहद मजबूत हैं, लेकिन फिर भी वे मार्केट की नजर में कम कीमत पर ट्रेड हो रहे हैं।

Bank of India Share
1906 में स्थापित, बैंक ऑफ इंडिया एक प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक है जिसमें सरकार की 73% हिस्सेदारी है। वित्त वर्ष 2024-25 में इस बैंक ने ऑपरेटिंग प्रॉफिट में 1.66% और नेट प्रॉफिट में 45.92% की जबरदस्त ग्रोथ दर्ज की।
प्रमुख आँकड़े:
- नेट प्रॉफिट: ₹929 करोड़
- टोटल रेवेन्यू: ₹5358.22 करोड़
- प्राइस टू बुक रेशियो: मात्र 0.7x (इंडस्ट्री एवरेज 1.05x)
- कासा ग्रोथ: 3.9% ईयर-ऑन-ईयर
- एनपीए: 25.5% की गिरावट के साथ ₹7434 करोड़
- कैपिटल एडिक्वेसी रेशियो: 17.77% (81bps की बढ़त)
बैंक ने अपने नॉन-इंटरेस्ट इनकम में 46% की उछाल के साथ बैलेंस शीट को और मजबूत किया है। इसके अलावा 22 ओवरसीज ब्रांचेस से 11.8% रेवेन्यू आता है, जो इसकी ग्लोबल मौजूदगी को दर्शाता है।
हालांकि, नेट इंटरेस्ट मार्जिन में 15 पॉइंट की गिरावट आई है (2.97% से 2.82%), लेकिन RBI की रेपो रेट कट और धीमी फंडिंग कॉस्ट एडजस्टमेंट इसकी वजह हैं। फिर भी मजबूत रिकवरी, बैलेंस शीट क्वालिटी और अंडरवैल्यूएशन इसे लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स के लिए आकर्षक विकल्प बनाते हैं।
Natco Pharma Share
1981 में स्थापित, NATCO फार्मा ने अपने आप को कॉम्प्लेक्स जेनेरिक्स और ऑन्कोलॉजी दवाओं में वैश्विक स्तर पर स्थापित किया है। कंपनी का ज़ोर R&D और हाई मार्जिन फॉर्मुलेशंस पर है।
प्रमुख आँकड़े:
- कंसोलिडेटेड रेवेन्यू: ₹4784 करोड़ (16% ग्रोथ)
- ऑपरेटिंग मार्जिन: 49.6% (FY20 के 30.4% से तेज़ बढ़ोतरी)
- PE Ratio: मात्र 8.7x (इंडस्ट्री एवरेज 33.8x)
- Debt-to-Equity Ratio: मात्र 0.04 (लगभग डेट-फ्री कंपनी)
- कैश रिज़र्व: ₹3500 करोड़ से अधिक
कंपनी की ताकत उसका फ्लैगशिप प्रोडक्ट “G-Revlimid” है, जिसने US मार्केट में जबरदस्त ग्रोथ दी है। हालांकि, इस दवा का पेटेंट FY26 के अंत में खत्म होने वाला है जिससे 20-30% तक की रेवेन्यू और प्रॉफिट गिरावट संभव है।
NATCO अपनी पोस्ट-GRevlimid स्ट्रैटेजी में जुट चुका है। Pristim और Semaglutide जैसे हाई वैल्यू ड्रग्स पर काम चल रहा है। इसके साथ ही कंपनी एग्रोकेमिकल डिवीजन में भी कदम रख चुकी है, जो लॉन्ग टर्म में नया रेवेन्यू स्ट्रीम बन सकता है।
हालांकि कुछ चुनौतियाँ जैसे वर्किंग कैपिटल साइकिल का लंबा होना और इन्वेंटरी लेवल्स की अधिकता हैं, लेकिन कंपनी की मजबूत बैलेंस शीट और फॉरवर्ड प्लानिंग इसे लॉन्ग टर्म निवेशकों के लिए एक पॉज़िटिव स्टोरी बनाती हैं।
निष्कर्ष:
ये दोनों कंपनियाँ — Bank of India और Natco Pharma — अपनी इंडस्ट्री में मजबूत फंडामेंटल्स और अंडरवैल्यूएशन के कारण लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स के लिए बेहतरीन अवसर प्रदान करती हैं। जैसा कि ग्राहम ने कहा था, “लॉन्ग रन में रिटर्न्स, प्रॉफिट ग्रोथ की दिशा में ही चलते हैं।” ऐसे में इन स्टॉक्स पर एक नज़र रखना समझदारी होगी।
F.A.Q.
– क्या बैंक ऑफ इंडिया (BOI) वाकई लॉन्ग टर्म निवेश के लिए अच्छा विकल्प है?
हाँ, बैंक ऑफ इंडिया की मजबूत बैलेंस शीट, सरकारी हिस्सेदारी (73%), कम प्राइस टू बुक रेशियो (0.7x), और बढ़ता नेट प्रॉफिट इसे लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स के लिए आकर्षक बनाते हैं। बैंक की ओवरसीज मौजूदगी और ऑपरेटिंग ग्रोथ इसे और भी मज़बूत बनाती है।
– नैटको फार्मा की सबसे बड़ी ताकत क्या है?
NATCO फार्मा की सबसे बड़ी ताकत उसका फ्लैगशिप प्रोडक्ट “G-Revlimid” है, जिसने US मार्केट में जबरदस्त ग्रोथ दी है। इसके अलावा कंपनी का फोकस R&D, हाई मार्जिन फॉर्मुलेशंस और नई दवाओं पर है, जो भविष्य की तैयारी को दर्शाता है।
– क्या इन दोनों कंपनियों के स्टॉक्स अंडरवैल्यूड हैं?
जी हाँ, दोनों कंपनियाँ — BOI और NATCO — अपनी इंडस्ट्री एवरेज की तुलना में कम वैल्यूएशन पर ट्रेड हो रही हैं। BOI का P/B रेशियो सिर्फ 0.7x है, जबकि NATCO का PE रेशियो सिर्फ 8.7x है, जो इनके फंडामेंटल्स को देखते हुए अंडरवैल्यूएशन को दर्शाता है।
– क्या NATCO फार्मा का भविष्य सुरक्षित है जब G-Revlimid का पेटेंट खत्म हो जाएगा?
हालांकि G-Revlimid का पेटेंट FY26 में खत्म हो रहा है, लेकिन कंपनी पहले से ही Pristim, Semaglutide जैसे नए हाई वैल्यू प्रोडक्ट्स पर काम कर रही है। इसके साथ ही एग्रोकेमिकल डिवीजन में प्रवेश कंपनी के लिए नए रेवेन्यू स्ट्रीम खोल सकता है।
– क्या बैंक ऑफ इंडिया में निवेश करने से पहले किसी जोखिम पर भी ध्यान देना चाहिए?
हाँ, हालाँकि BOI की फंडामेंटल स्थिति मजबूत है, लेकिन गिरते हुए नेट इंटरेस्ट मार्जिन और पब्लिक सेक्टर बैंकों से जुड़े रेगुलेटरी रिस्क्स को ध्यान में रखना चाहिए। लॉन्ग टर्म दृष्टिकोण से, बैंक की रिकवरी और ग्रोथ ट्रेंड्स पॉजिटिव संकेत देते हैं।
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