6 अगस्त 2025 को रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) की 56वीं बैठक का समापन हुआ। हर बार की तरह इस बार भी निवेशकों, बैंकों और बाजार की नजर इस फैसले पर टिकी थी कि क्या रेपो रेट घटेगा, बढ़ेगा या जस का तस रहेगा। इस बार भी RBI ने उम्मीद के मुताबिक रेपो रेट को 5.50% पर स्थिर रखा है। समिति के सभी छह सदस्यों ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया।
नीति का रुख “न्यूट्रल” रखा गया है, यानी RBI अब भी सतर्क है और आगे की नीतियां देश की आर्थिक स्थिति और वैश्विक घटनाओं को ध्यान में रखकर तय होंगी।

RBI Monetary Policy रेपो रेट स्थिर, नीति रुख न्यूट्रल
रेपो रेट वही दर होती है जिस पर वाणिज्यिक बैंक RBI से अल्पकालिक ऋण लेते हैं। इसका असर सीधे तौर पर आम जनता पर पड़ता है, खासकर लोन और EMI पर। इस बार RBI ने रेपो रेट 5.50% पर स्थिर रखा है।
इसका सीधा मतलब यह है कि होम लोन, कार लोन या अन्य कर्ज लेने वालों के लिए ब्याज दरों में फिलहाल कोई राहत या बढ़ोतरी नहीं होगी।
नीति रुख “न्यूट्रल” बनाए रखने का मतलब यह है कि RBI अभी भी ग्रोथ और महंगाई के बीच संतुलन बनाकर चलना चाहता है। अगर आने वाले महीनों में महंगाई घटती है, तो ब्याज दरों में कटौती की संभावना बन सकती है।
CRR कटौती से लोन सस्ता होने की उम्मीद
RBI ने यह भी स्पष्ट किया कि पिछली बार घोषित CRR (कैश रिज़र्व रेश्यो) कटौती सितंबर 2025 से लागू होगी। इसका फायदा बैंकों को यह होगा कि उनके पास ज्यादा फंड उपलब्ध रहेगा, जिससे वे अधिक लोन दे सकेंगे।
इससे लोन की उपलब्धता बढ़ सकती है और ब्याज दरों में थोड़ी नरमी आ सकती है। यह कदम खासकर MSME सेक्टर, रिटेल लोन और रियल एस्टेट को थोड़ा समर्थन दे सकता है।
FY26 के लिए GDP और महंगाई के अनुमान
RBI ने वित्त वर्ष 2025–26 (FY26) के लिए GDP वृद्धि दर का अनुमान 6.5% पर बनाए रखा है। इसके पीछे कई कारण हैं:
- शहरी और ग्रामीण मांग में सुधार
- सरकार का पूंजीगत खर्च बढ़ना
- विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में स्थिरता
वहीं दूसरी ओर, मुद्रास्फीति (CPI आधारित) का अनुमान घटाकर 3.1% कर दिया गया है, जो पहले 3.7% था। यह दर्शाता है कि खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कीमतों में फिलहाल कोई बड़ा दबाव नहीं है। हालांकि, Q1 FY27 के लिए महंगाई 4.9% तक पहुंच सकती है, जिसे लेकर RBI सतर्क है।
वैश्विक जोखिम और शेयर बाजार की प्रतिक्रिया
RBI ने वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं पर चिंता जताई है। खासकर अमेरिका की आयात शुल्क (tariff) नीति को लेकर। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नई व्यापार नीतियों से भारत के कुछ एक्सपोर्ट सेक्टर प्रभावित हो सकते हैं।
इस नीति घोषणा के बाद शेयर बाजारों में हल्की गिरावट देखी गई।
- BSE Sensex लगभग 308 अंक नीचे बंद हुआ।
- Nifty 50 भी करीब 24,550 के आसपास कमजोर बंद हुआ।
इससे यह संकेत मिलता है कि निवेशक फिलहाल सतर्क रुख अपना रहे हैं और RBI की नीति को संतुलित लेकिन सतर्क मान रहे हैं।
निष्कर्ष
RBI की यह नीति समीक्षा एक सावधानीपूर्वक संतुलन दिखाती है। जहां रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया, वहीं सितंबर से CRR कटौती से सिस्टम में तरलता बढ़ेगी। साथ ही नीति रुख को न्यूट्रल रखने से यह स्पष्ट होता है कि RBI अभी कोई भी कदम उठाने से पहले पूरी तस्वीर का इंतज़ार कर रहा है।
आम निवेशकों और कर्ज लेने वालों के लिए यह नीति कोई बड़ा बदलाव नहीं लाती, लेकिन भविष्य की संभावनाओं के दरवाज़े खुले रखती है।
F.A.Q.
– रेपो रेट क्या होता है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?
रेपो रेट वह दर होती है जिस पर बैंक RBI से कर्ज लेते हैं। अगर रेपो रेट घटता है तो बैंक सस्ता कर्ज ले सकते हैं और आम लोगों को लोन सस्ते मिलते हैं। इससे आर्थिक गतिविधियां तेज होती हैं।
– क्या आने वाले समय में RBI ब्याज दर घटा सकता है?
संभावना है, क्योंकि मुद्रास्फीति (महंगाई) घटकर 3.1% हो गई है। अगर यह ट्रेंड जारी रहा और वैश्विक जोखिम सीमित रहे, तो RBI ब्याज दरों में कटौती कर सकता है।
– CRR कटौती का क्या असर होगा?
CRR कटौती से बैंकों के पास ज्यादा पैसा रहेगा, जिससे वे ज्यादा लोन दे पाएंगे। इससे बाजार में तरलता बढ़ेगी और क्रेडिट ग्रोथ को मदद मिलेगी।
– RBI की मौद्रिक नीति में सुधार की सबसे बड़ी ज़रूरत क्या है?
नीति में पारदर्शिता और भविष्य को लेकर स्पष्ट संकेतों (forward guidance) की कमी है। साथ ही, रेपो रेट में लचीलापन और वैश्विक खतरों के लिए ठोस रणनीति भी जरूरी है।
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