पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय शेयर बाजार में आईपीओ (इनीशियल पब्लिक ऑफरिंग) का क्रेज तेजी से बढ़ा है। खासकर, रिटेल निवेशकों ने अपनी समझदारी और रणनीतियों से इस क्षेत्र में नई पहचान बनाई है।
अब रिटेल पब्लिक पहले की तुलना में कहीं अधिक जानकार और सतर्क हो गई है। इस बदलाव ने न केवल बाजार की दक्षता को बढ़ाया है, बल्कि प्रॉफिट के मौके को भी चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
IPO में सफलता के टिप्स
शेयर बाजार में 20 वर्षों से अनुभव रखने वाले विशेषज्ञ बताते हैं कि आईपीओ में सफलता पाने के लिए कुछ खास रणनीतियां अपनाई जा सकती हैं।
- मल्टीपल अकाउंट्स का उपयोग करें:
एक पैन कार्ड पर केवल एक ही एप्लीकेशन लगाएं। यदि आप एक ही पैन कार्ड से कई एप्लीकेशन लगाते हैं, तो सभी आवेदन रिजेक्ट हो सकते हैं। इसके बजाय, परिवार के सदस्यों, दोस्तों या रिश्तेदारों के डीमैट अकाउंट से आवेदन करें। इससे आपके अलॉटमेंट के चांसेस बढ़ जाते हैं। - अपना निवेश बजट तय करें:
अगर संभव हो, तो 10 लाख तक का निवेश करें। बड़े निवेश से अलॉटमेंट मिलने की संभावना भी अधिक हो जाती है। हालांकि, निवेश हमेशा अपनी क्षमता और जोखिम सहने की क्षमता के आधार पर ही करें। - कंपनी की प्रोफाइल का विश्लेषण करें:
कंपनी की वित्तीय स्थिति, भविष्य की संभावनाएं और बाजार में उसकी स्थिति का मूल्यांकन करना जरूरी है। लॉस में चल रही कंपनियों में निवेश करने से बचें।
IPO बाजार में बदलाव के संकेत
आज के समय में, रिटेल पब्लिक की बढ़ती जागरूकता ने बाजार में एक बड़ा बदलाव लाया है। यह सिर्फ प्राइमरी मार्केट तक सीमित नहीं है, बल्कि सेकेंडरी मार्केट पर भी इसका प्रभाव दिखाई देता है। अब निवेशक जल्दी मुनाफा कमाने की बजाय, दीर्घकालिक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
कई उदाहरण सामने आए हैं जहां रिटेल निवेशकों ने संस्थागत निवेशकों से अधिक भागीदारी दिखाई है। कुछ IPO ऐसे भी रहे, जहां रिटेल सब्सक्रिप्शन का आंकड़ा उच्चतम स्तर पर पहुंच गया, जबकि QIB (क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स) और HNI (हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स) का सब्सक्रिप्शन अपेक्षाकृत कम था।
रिटेल पब्लिक की स्मार्ट रणनीति
IPO में रिटेल निवेशकों का बढ़ता सब्सक्रिप्शन साफ दर्शाता है कि वे अब कंपनियों की वित्तीय स्थिति, मुनाफा और भविष्य की संभावनाओं को गहराई से समझने लगे हैं। पहले जहां निवेशक बिना सोच-विचार के नुकसान में चल रही कंपनियों में भी पैसा लगा देते थे, वहीं अब वे समझदारी से फैसले लेते हैं। उदाहरण के तौर पर, जिन कंपनियों के आईपीओ पूरी तरह से “ऑफर फॉर सेल” होते हैं, उनके प्रति रिटेल पब्लिक की रुचि कम होती है।
इसके अलावा, अगर कोई कंपनी नुकसान में है, तो रिटेल निवेशक ऐसी कंपनियों से दूरी बनाए रखते हैं। यह दर्शाता है कि निवेशक अब अपनी पूंजी को जोखिम में डालने से पहले पूरी रिसर्च करते हैं। यह बदलाव विभिन्न माध्यमों से उपलब्ध जानकारी और आईपीओ बाजार के प्रति जागरूकता के कारण हुआ है।
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