शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों (FII और FPI) का महत्वपूर्ण योगदान होता है। ये विदेशी ब्रोकरेज हाउस और इन्वेस्टमेंट बैंकर्स भारतीय बाजार में अहम भूमिका निभाते हैं।
बाजार की चाल को देखते हुए कई निवेशक इनकी गतिविधियों का अनुसरण करने की कोशिश करते हैं। लेकिन कुछ वैल्यू इन्वे स्टर्स का मानना है कि विदेशी निवेशकों की रणनीतियों को कॉपी करना हमेशा लाभदायक नहीं होता। कई बार इनकी गतिविधियों के विपरीत दिशा में चलना भी फायदेमंद साबित हो सकता है।
आइए जानते है विदेशी निवेशकों भारतीय बाज़ार को किस तरह से प्रभाव डाल सकता है और बाज़ार में कब तक तेजी लोटेगी बिस्तार से जानते है:-
विदेशी निवेशकों की खरीदारी लोटी
हाल के महीनों में विदेशी निवेशकों की गतिविधियाँ चर्चा का विषय रही हैं। नवंबर में, उन्होंने भारतीय शेयर बाजार में लगभग ढाई अरब डॉलर की बिकवाली की, जिससे बाजार में भारी गिरावट दर्ज हुई।
पहले यह धारणा थी कि घरेलू निवेशक, सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) के माध्यम से बाजार को स्थिर बनाए रख सकते हैं और विदेशी बिकवाली का प्रभाव सीमित रहेगा। लेकिन नवंबर की बिकवाली के बाद यह धारणा कमजोर पड़ी।
हालांकि, दिसंबर के पहले दस दिनों में विदेशी निवेशकों ने लगभग तीन अरब डॉलर की खरीदारी की है। इस खरीदारी से बाजार में तेज़ी आई, और निफ्टी में लगभग 2% की बढ़त दर्ज की गई। विशेषज्ञों का मानना है कि यह तेजी सरकार के बढ़ते खर्च और कंपनियों की सुधरती आय की उम्मीदों से प्रेरित है।
बाज़ार को लेकर आने वाले समय की संभावनाएँ
बाजार विश्लेषकों के अनुसार, निफ्टी और सेंसेक्स जैसे सूचकांकों में आगे भी तेज़ी की संभावना है। उदाहरण के लिए, मॉर्गन स्टेनली का अनुमान है कि अगले एक साल में सेंसेक्स 93,000 तक पहुँच सकता है, अगर वैश्विक आर्थिक परिस्थितियाँ स्थिर रहती हैं।
इसके अलावा, घरेलू म्यूचुअल फंड हाउस और संस्थागत निवेशकों के पास भी पर्याप्त धनराशि है, जो बाजार को आगे बढ़ने में सहारा दे सकती है।
बाज़ार में तेजी से रिकवरी
म्यूचुअल फंड में SIP फ्लो में हाल ही में थोड़ी बहुत गिरावट आई है। इसका कारण विदेशी निवेशकों की बिकवाली और बाजार में बढ़ती अस्थिरता हो सकता है। लेकिन दिसंबर में हो रही रिकवरी से उम्मीद है कि निवेशक फिर से बाजार में लौटेंगे और इसे स्थिरता प्रदान करेंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के मैन्युफैक्चरिंग और आईटी क्षेत्रों में विकास के संकेत मिल रहे हैं। खासकर, चाइना-प्लस-वन रणनीति के तहत अमेरिकी कंपनियाँ चीन पर निर्भरता कम करके भारत से आयात बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं। यह भारत की निर्यात क्षमताओं को बढ़ावा देने वाला संकेत है, जिससे बाज़ार में तेजी से रिकवरी होते देखने को मिल सकता हैं।
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