अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जिसमें एफसीपीए (फॉरेन करप्ट प्रैक्टिस एक्ट) कानून को लागू करने पर रोक लगा दी गई है। यह वही कानून है जिसके तहत भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी को आरोपों का सामना करना पड़ा था। इस निर्णय के प्रभावों और गौतम अडानी पर लगे आरोपों को विस्तार से समझते हैं।

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ट्रंप का नया आदेश और उसका उद्देश्य
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने प्रशासन के तहत एक आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें एफसीपीए को प्रभावी रूप से निलंबित कर दिया गया है। उनका तर्क है कि यह कानून अमेरिकी कंपनियों के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार करना कठिन बना देता है। उन्होंने कहा कि यह कानून कागजों पर तो सही प्रतीत होता है, लेकिन व्यवहारिक रूप से यह एक बाधा है। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि इस कानून के कारण अमेरिकी कंपनियां वैश्विक प्रतिस्पर्धा में पीछे रह जाती हैं। इस आदेश का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सहायता प्रदान करना और उन्हें बेहतर अवसर उपलब्ध कराना है।
व्हाइट हाउस की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि अमेरिकी सुरक्षा और अर्थव्यवस्था, अमेरिकी कंपनियों की सफलता पर निर्भर करती है। एफसीपीए के अधिक कठोर होने से अमेरिकी कंपनियों को नुकसान उठाना पड़ रहा था, और इसे समाप्त करना अमेरिकी व्यापार के लिए एक सकारात्मक कदम हो सकता है।
एफसीपीए कानून क्या है?
एफसीपीए (Foreign Corrupt Practices Act) अमेरिका का एक ऐसा कानून है, जो अमेरिकी कंपनियों और नागरिकों को विदेशी अधिकारियों को रिश्वत देने से रोकता है। यह कानून 1977 में लागू किया गया था, और इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार में पारदर्शिता लाना और भ्रष्टाचार को कम करना था। इसके तहत किसी भी अमेरिकी कंपनी या नागरिक को विदेशों में व्यापार के लिए रिश्वत देने की अनुमति नहीं थी।
इस कानून की वजह से कई बड़ी कंपनियों पर कार्रवाई हो चुकी है। उदाहरण के लिए, 2008 में जर्मनी की दिग्गज कंपनी सीमेंस (Siemens) को एफसीपीए के तहत 1.6 अरब डॉलर का जुर्माना भरना पड़ा था। इसी तरह, अमेरिकी दवा कंपनी एली लिली (Eli Lilly) को भी 29 मिलियन डॉलर का जुर्माना चुकाना पड़ा था, क्योंकि उनकी सहायक कंपनियों ने रूस और चीन में रिश्वत दी थी।
गौतम अडानी पर लगे आरोप
नवंबर 2024 में, अमेरिकी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज कमिशन (SEC) और डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस (DOJ) ने गौतम अडानी और उनके सहयोगियों के खिलाफ एफसीपीए के उल्लंघन के आरोप लगाए थे। इन एजेंसियों का आरोप था कि अडानी समूह ने भारतीय सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देकर सोलर एनर्जी से जुड़े बड़े अनुबंध हासिल किए थे। हालांकि, अडानी समूह ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया था।
नए आदेश का प्रभाव
ट्रंप के इस आदेश के बाद, यदि एफसीपीए कानून को प्रभावी रूप से समाप्त कर दिया जाता है, तो इससे अमेरिकी नागरिकों और कंपनियों पर लगे पुराने मामलों की समीक्षा की जा सकती है। इसका मतलब यह हो सकता है कि अडानी समूह और उनके सहयोगियों पर लगे आरोपों में भी नरमी बरती जाए या उन्हें पूरी तरह से खारिज कर दिया जाए।
व्हाइट हाउस ने यह भी कहा है कि वे एफसीपीए के सभी पुराने और नए मामलों की समीक्षा करेंगे और इस पर नए दिशा-निर्देश जारी करेंगे। यह आदेश अमेरिकी कंपनियों के लिए राहत की बात हो सकती है, लेकिन इससे एफसीपीए के कानून के उल्लंघन को लेकर एक नरम दृष्टिकोण अपनाया जाएगा, जो कुछ लोगों को उचित नहीं लग सकता।
क्या यह फैसला सही है?
इस फैसले को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रिया मिल रही है। जहां कुछ विशेषज्ञ इसे अमेरिकी कंपनियों के लिए एक बड़ा राहत भरा कदम मान रहे हैं, वहीं कुछ का कहना है कि यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है। एफसीपीए को हटाने से अंतरराष्ट्रीय व्यापार में रिश्वतखोरी की घटनाएं बढ़ सकती हैं और व्यापार में अनैतिक प्रथाओं को बढ़ावा मिल सकता है।
हालांकि, ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि यह कानून अब पुराना हो चुका है और इसे बदलने की जरूरत है, ताकि अमेरिकी कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक स्वतंत्रता से कार्य कर सकें।
निष्कर्ष
गौतम अडानी और उनके व्यापारिक समूह के लिए यह आदेश एक बड़ी राहत साबित हो सकता है। ट्रंप प्रशासन का यह निर्णय अमेरिकी कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अधिक अवसर देने के लिए लिया गया है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर अभी भी बहस जारी है।
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